क्या पुरूष की अस्मिता अब अस्मिता नहीं रही !
खुलेआम एक बाप अपनी बेटी को आगे कर बलात्कार का फर्जी वाद दर्ज कराना चाहता था । पुलिस की मुस्तैदी से वाद तो दर्ज नहीं हुआ । परन्तू यहाँ यह सोचने का विषय यह है कि उन लड़कों पर क्या बीतती अगर यह फर्जी मुकदमा दर्ज हो जाता ? उनकी दामन पर लगने वाले यह दाग कब छूटते और छूट भी जाते तो जीवन के उन वर्षों का क्या सिला मिलता जो इस फर्जी मुकदमें को लड़ने में बरबाद होते ? बलात्कार के फर्जी मामले दर्ज कराने में सरकार की ओर से ’पीड़िता’ को मिलने वाला मुआवजा भी एक कारक हो सकता है ?